सांस्कृतिक और ऐतिहासिक का अनूठा संगम गंगा मेला- प्रवक्ता सर्वेश तिवारी
कानपुर/ वैसे पूरे देश में होली सिर्फ एक ही दिन मनाई जाती है, लेकिन कानपुर में होली के बाद गंगा मेला के दिन भी जमकर रंग खेला जाता है। शहर के हटिया और पुराने मोहल्ले सहित पूरे शहर में होली की मस्त बयार गंगा मेला के दिन भी जमकर बहती है। हटिया बाजार के कई इलाकों में लगातार सात दिनों तक जमकर होली खेली जाती थी।हर सहाय जगदम्बा सहाय इन्टर कॉलेज में प्रवक्ता और उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षक संघ चंदेल गुट के जिला मंत्री सर्वेश तिवारी ने बताया कि इसके पीछे का इतिहास देश की आजादी के पहले का है।गंगा मेला की सामाजिक ,सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत को कानपुर आज भी अपने आगोश में समेटे हुए है।गंगा मेला के इतिहास को लेकर उन्होंने कुछ जानकारी साझा की।
सात दिन तक एक ही कपड़े पहन खेलते थे होली
हटिया बाजार में पुराने समय एक ही कपड़े को सात दिनों तक पहन कर होली खेली जाती थी। एक दर्जन से ज्यादा टोलियां मोहल्ले में घूम-घूम कर यहां स्थित ऐतिहासिक मैदान में इकट्ठा होते थे। इसके बाद करीब तीन घंटे तक फाल्गुन के गीतों पर लोग ठुमके लगाते थे। समय के साथ कुछ बदलाव जरूर हुए हैं, लेकिन होली वाले दिन और गंगा मेला के दिन जमकर होली खेली जाती है। कानपुर के पुराने मोहल्लों और इलाकों में गंगा मेला की धूम अलग ही होती है।
होली के साथ जुड़ा है इतिहास
हटिया बाजार की होली और गंगा मेला के साथ देश की आजादी की लड़ाई का इतिहास भी जुड़ा हुआ है। बताया जाता है कि साल 1942 में होली के दिन यहां के नौजवानों ने बिहारी भवन से भी ज्यादा ऊंचाई पर तिरंगा फहरा दिया था। इसके लिए युवाओं ने लोहे की रॉड का इस्तेमाल किया था। इसके बाद वे गुलाल उड़ाते हुए नाच-गा रहे थे। यह जानकारी मिलते ही अंग्रेज सिपाही वहां पहुंचे और झंडा उतारने का आदेश दिया। इसके बाद सिपाहियों और अंग्रेजों में जंग छिड़ गई। तिरंगा फहराने और होली मनाने के विरोध में हमीद खान, बुद्धूलाल मेहरोत्रा, नवीन शर्मा,गुलाब चंद्र सेठ, विश्वनाथ टंडन, गिरिधर शर्मा सहित एक दर्जन से अधिक लोगों को जेल भेज दिया गया। हालांकि, अंग्रेजों की इस कार्रवाई का जमकर विरोध शुरू हो गया।
जब बंद हो गया था कानपुर बाजार
गिरफ्तारी के विरोध में कानपुर का पूरा बाजार बंद हो गया। विरोध जताते हुए लोगों ने अपने चेहरे के रंग तक नहीं साफ किए। शहर की दुकानें और प्रतिष्ठानों में बंदी कर ताले लगा दिए गए। यहां तक कि इसके विरोध में मिलों और फैक्ट्रियों के मजदूर तक हड़ताल पर चले गए और कानपुर पूर्ण रूप से बंद हो गया। पुराने लोगो की मानें तो इस बंदी और विरोध का स्वर व कानपुर आंदोलन की गूंज सात समंदर पार तक पहुंच गई। फिर भी अंग्रेज बंदी युवकों को छोड़ने को तैयार हुए तो शहर के लोग आंदोलन पर अड़े रहे। आंदोलन ने तीसरे दिन तेजी पकड़ ली और तो अंग्रेज परेशान हो गए। हड़ताल के चौथे दिन अंग्रेजों के एक बड़े अफसर ने लोगों से बात करके मामला सुलझाया था।
अनुराधा नक्षत्र की तिथि को खेली जाती है होली
इसके बाद होली के पांचवें दिन सभी युवकों को छोड़ने का ऐलान किया गया। उस दिन अनुराधा नक्षत्र की तिथि थी। इसके चलते शहर के सभी लोग जेल के बाहर इकट्ठे हो गए। वहीं, जेल में बंद युवकों ने भी अपने चेहरों से रंग नही छुड़ाया था। जेल से रिहा होने के बाद जुलूस निकालकर उन युवकों को सरसैया घाट ले जाया गया। जो होली होलिका दहन के बाद नहीं खेली जा सकी थी, वह उस दिन सरसैया घाट के तट पर गुलाल लगाकर खेली गई। तभी से होलिका दहन से लेकर किसी भी दिन पड़ने वाले ‘अनुराधा नक्षत्र’ की तिथि तक कानपुर में होली खेली जाती है।
रंगों में सराबोर हो जाता है पूरा शहर
गंगा मेला के दिन कानपुर का रंग कुछ और ही दिखाई देता है। धर्म, जाति, वर्ग, अमीर-गरीब की दीवारें गिर जाती हैं और दोपहर तक पूरा शहर होली में सराबोर हो जाता है। इसके बाद आज भी शाम के समय सरसैया घाट के तट पर ही उन आजादी के मतवालों की याद को जिंदा रखते हुए शहरवासी होली गंगा मेला मिलन समारोह का आयोजन करते हैं।
हर साल निभाई जाती है परंपरा
स्थानीय लोगों ने बताया कि कई साल से चली आ रही इस परंपरा को हर बार निभाया जाता था। हालांकि, अब केवल दो दिन ही होली खेली जाती है। गंगा मेला के दिन यहां काफी रंग खेला जाता है। साथ ही, ठेले पर रंग का जुलूस निकाला जाता है। यह जुलूस हटिया बाजार से शुरू होकर सरसैया घाट पर शहर भर के लोग इकट्ठा होते हैं और एक-दूसरे को होली की बधाई देते हैं।